मंगलवार, 16 अगस्त 2011

ये आँसू .....

कभी-कभी दिल को जलाते हैं तेज़ाब बनकर आँसू
गिरते हैं कभी किसी बेआबरू का हिजाब बनकर  आँसू

कोई जब किसी अज़ीज़ को खोता है
या कोई ग़म आसपास होता है
अनहद बहते हैं तब दरिया-ए-आब बनकर आँसू
कभी-कभी दिल को जलाते हैं तेज़ाब बनकर आँसू

मिले जब कामयाबी किसी सपने की तरह
या मिले ख़ुशी कोई प्यारे तोहफ़े की तरह
बरबस बरसते हैं जनाब रह-रहकर आँसू
कभी-कभी दिल को जलाते हैं तेज़ाब बनकर आँसू

जब कभी याद सताये अपनों की
या दिल को ठेस लगाये,अपना ही
रिसते हैं धीरे-धीरे बेहिसाब छनकर आँसू
कभी-कभी दिल को जलाते हैं तेज़ाब बनकर आँसू

रह जाए कोई ज़िन्दगी की ज़रुरत अधूरी
या रह जाए कोई मुराद होते-होते पूरी
अनायास दिख ही जाते हैं कोई बुरा ख़्वाब बनकर आँसू
कभी-कभी दिल को जलाते हैं तेज़ाब बनकर आँसू

अभी तो ग़म उठाने का ये शौक़ नया-नया है
आँसू भी नए हैं और दर्द भी नया-नया है
मज़ा तो तब होगा जब आयेंगे पुरानी शराब बनकर आँसू
कभी-कभी दिल को जलाते हैं तेज़ाब बनकर आँसू

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