रविवार, 29 जनवरी 2012

मुश्किल था इम्तेहान....


मुश्किल था इम्तेहान और बेख़ुदी का आलम
करना था जाने क्या,न जाने क्या कर आया


वो आये तेरी महफ़िल में, सच्ची बात जो कह दी
कह उठे लोग, कैसा बेहूदा सुख़नवर आया 


हमने भी मुहौब्बत की थी दिल-ओ-जान से
जाने क्या कमी थी के नतीजा सिफ़र आया 


जब भी पलटे ज़िन्दगी के पिछले पन्ने
हर अक्स-ओ-लफ़्ज़ बड़ा धुंधला नज़र आया


ये सच है के चेहरा मेरा, हसीं नहीं आप सा
फ़िर भी जज़्बा मेरा देखो,मैं बन-संवर आया


ये आलूदगी है दिल की मेरे या माजरा कुछ और
जो भी गुज़रा मेरे दिल से, रुख़ स्याह नज़र आया

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