रविवार, 4 मार्च 2012

अबके होली में ऐसा हो जाए. . . . .

अबके होली में ऐसा कुछ सिलसिला हो जाए 
धुल जाएँ नफ़रतें,दिल मुहौब्बत में रंगीला हो जाए 

हम आयें तेरे दर पर तो फूल खिल उठें 
तू जो आये क़रीब मेरे, ख़ुशी से दिल पगला हो जाए 


हम तो तुझे ख़्वाबों में देखते हैं अक्सर
तेरे दिल में मेरे दीदार का वलवला हो जाए

निकला हूँ अकेला मंज़िल की तलाश में
मिले जो तुम सा रहबर , बस काफ़िला हो जाए

तोड़ दे सारी सरहदें तू मेरे लिए दिलबर
मेरे दिल में भी ऐसा हौसला हो जाए

मुस्कराहटें तेरे लबों पे आने को मचलें
ग़मों से तेरा कुछ इस तरह फ़ासला हो जाए

मेरी तनहाई का सबब ख़ुशियाँ रहीं अब तलक
ग़मज़दा हूँ, अब तेरी महफ़िल में दाख़िला हो जाए

ग़र होता हो इस तरह,तो ये भी सही
मयकशी से ही हल ये मसला हो जाए