मंगलवार, 28 अक्तूबर 2014

एक विनती माँ से...

पूजन अर्चन  वंदन है  नित भक्त  सभी अब  मात पुकारें 


रिद्धि व सिद्धि प्रदायक माँ करके किरपा मम द्वार पधारें


प्रेम   प्रकाश  यहाँ  बिखरे  सबके मन-मंदिर  दीपक  बारें


मानव  रक्त  पिपाषु बना  उसके अब तो  सब कर्म सुधारें

                                                        
                                                       -निर्दोष दीक्षित

शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

अमर शहीदों के लिए...

कुछ याद उन्हें भी कर लो
जो लौट के घर ना आये..... 
जो लौट के घर ना आये...


आँखों में आँसू, ज़ेहन में कितने सवाल लाया है
आज तिरंगे में लिपटा किसी का लाल आया है

राहें उसकी तकते तकते, बूढ़ी आँखें पथराई होंगी
उसे सुलाने को माँ ने कभी लोरियां गाई होंगी
उसकी तुतली बोली पर सब कुछ वार दिया होगा
उसको भी तो माँ ने ख़ुद से ज़्यादा प्यार किया होगा
उस माँ के मन में आज वही बनके भूचाल आया है
आज तिरंगे में लिपटा किसी का लाल आया है

उसने भी अपनी गोरी से वादे तमाम किये होंगे
कुछ साल ज़िन्दगी के रंगीं उसके नाम किये होंगे
दफ़्न हुई आवाज़ कहीं औ सुर साज रूठे होंगे
कितने वादे कितने सपने कहीं आज टूटे होंगे
किन्तु प्रतिज्ञा पूरी करके वो कर कमाल आया है
आज तिरंगे में लिपटा किसी का लाल आया है

उसकी गुड़िया सी गुड़िया आँगन में तो खेलेगी
पर इस दुनिया के तूफ़ाँ जाने वो कैसे झेलेगी
अपने प्यारे बिट्टू को प्यारी फटकार लगाई होगी
उसने अपने पापा से चिठ्ठी में कार मंगाई होगी
पर हाय हाय कैसा समय का ये कुचाल आया है
आज तिरंगे में लिपटा किसी का लाल आया है
नहीं नहीं ये तो अपने देश का लाल आया है
वीर शहीदों की अमर थाती संभाल आया है
मात भारती का ऊँचा ये करके भाल आया है
शत शत नमन है ये अपने देश का लाल आया है।

रचना- निर्दोष दीक्षित
तिथि- 09.10.2014

सोमवार, 6 अक्तूबर 2014

रंग ज़िंदगी के....

गांठें ही गांठें हों जिसमें ऐसे बंधन देख लिए
कांटे ही कांटे हों जिसमें ऐसे दामन देख लिए

प्यार की दिलकश म्यानों में नफ़रत की शमशीर यहाँ
शिफ़ा के नाम पे ज़ख्म कुरेदे ऐसे मरहम देख लिए

उन्स वफ़ा के गुलशन में खिलते फूल अज़ाबों के
तेज़ाबी बारिश के मैंने ऐसे सावन देख लिए

लिखा किताबों में पाया ना मुर्शिद ने बतलाया था
ख़ून बहा दे सीने का अब ऐसे मौसम देख लिए

रिश्तों की लाशों को कैसे नोच नोच के खाते हैं
बिलकुल गिद्ध के जैसे हों ऐसे दुर्जन देख लिए

टूट गए बेआवाज़ वो कब औ ज़र्रा ज़र्रा बिखर गए
मैंने अपने घर के लुटते कितने ऐसे बर्तन देख लिए

श्री हनुमान जी के चरणों में

राम जहाँ हनुमान वहीं  भवसागर  तारण  हार  वही हैं


राम कृपा नित पात्र वही  नित जो हनुमंत दुआर वही हैं


काय महा छवि है जिनकी शिव शंकर के अवतार वही हैं


भक्त शिरोमणि राम सखा सम जीवन में करतार वही हैं

... क्यों नहीं होता

तन आज़ाद तो मन क्यूँ आज़ाद नहीं होता

प्रेम सद्भाव जहाँ में क्यूँ बुनियाद नहीं होता


देश के सीने पे ख़ंजर चलाने वालों को अब

बलिदान शहीदों का क्यूँ याद नहीं होता



जाने बुलबुलें कितनीं रोज़ दम तोड़ती यहाँ

ज़ालिम सैयाद ही क्यूँ बर्बाद नहीं होता


हर तरफ़ हैं नफ़रतें, हर तरफ़ रुसवाइयां

गुलशन मुहौब्बत का क्यूँ आबाद नहीं होता

दो कुंडलिया छंद

बिना  विचारे  कीजिये, मत  कोई  भी काम
मस्त चित्त निज राखिये, जीवन में आराम
जीवन   में   आराम,  बंसी   चैन   की  बाजै
सुखी   रहे   परिवार,  मुख   मुस्कान  छाजै
कहते   कवि   निर्दोष,  रहो  प्रभु  राम सहारे
खोया  धन सम्मान, किया  जो बिना विचारे




सोना  चाँदी धारिये,  तन  को जो  चमकाय
रखिये सुघर विचार तो, मन कंचन हो जाय
मन कंचन हो जाय, चमक  दुनिया  में फैले
मीठे  वो  हो   जांय,   जो   कड़वे  हैं  कसैले
कहते  कवि निर्दोष ,  मनुज है वही सलोना
सुविचारी  नरश्रेष्ठ,  जगत  में सच्चा सोना