सोमवार, 6 अक्तूबर 2014

दो कुंडलिया छंद

बिना  विचारे  कीजिये, मत  कोई  भी काम
मस्त चित्त निज राखिये, जीवन में आराम
जीवन   में   आराम,  बंसी   चैन   की  बाजै
सुखी   रहे   परिवार,  मुख   मुस्कान  छाजै
कहते   कवि   निर्दोष,  रहो  प्रभु  राम सहारे
खोया  धन सम्मान, किया  जो बिना विचारे




सोना  चाँदी धारिये,  तन  को जो  चमकाय
रखिये सुघर विचार तो, मन कंचन हो जाय
मन कंचन हो जाय, चमक  दुनिया  में फैले
मीठे  वो  हो   जांय,   जो   कड़वे  हैं  कसैले
कहते  कवि निर्दोष ,  मनुज है वही सलोना
सुविचारी  नरश्रेष्ठ,  जगत  में सच्चा सोना

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